मेरे पापा
जिंदगी के एक वीरान मोड़ पर
सूरज मेरे सिर पर था,
फिर अचानक से मुझ पर,
एक ठंडा-सा छाया आया।
मैने पीछे मुड़कर देखा,
वो खड़े थे मेरे पापा,
ईश्वर की अनमोल देन,
जिसने ऊॅंगली पकड़कर मुझे चलना सिखाया।
मुॅंह फुलाकर बैठा था मैं,
तो घोड़ा बनकर मुझे मनाया
बचपन की हर जिद को
चाॅंद खिलौनो से पूरा किया।
टी.वी. की हर एक धुन
उनके कदमों से दब जाती है,
उनके रहते मेरे पास
मुश्किल आने से घबराती है।
पिता से है नाम मेरा,
उन्होने ही आज मुझे बनाया,
सुपरहीरो से भी बढ़कर हैं,
मेरे लिए ”मेरे पापा“
प्रियांशु सहाय ( कक्षा १२ )